महंगाई के मुहं पर तमाचा है मेरा रेल बजट
अरविंद कुमार सिंह
नई दिल्ली .मेरा रेल बजट मंहगाई के मुंह पर तमाचा है। आम आदमी को ध्यान में रखकर हमने किराया भाड़ा बढ़ाना तो दूर उलटे इसे घटा दिया है। अगर रेलवे ने माल और यात्री भाड़ा बढ़ा दिया होता तो कल्पना क रिए मंहगाई का क्या हाल होता। मगर हम लोगों ने तमाम दबाव के बावजूद ऐसा नहीं किया है। एक इंटरव्यू में रेल मंत्री ने तमाम सवालों के जवाब खुलकर दिए। उन्होने कहा , रेल बजट सामाजिक न्याय को ध्यान में रख कर बना है और तमाम पिछड़े और गरीब इलाको के कायाक ल्प का तानाबाना इसमें बुना गया है। इन प्रयासों से भारतीय रेल को विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस बनाने में मदद मिलेगी तथा जो यात्री और माल हमसे दूर होते जा रहे थे वे वापस लौटेंगे। यहां प्रस्तुत है रेल मंत्री से बातचीत के प्रमुख अंश-
आपने इस रेल बजट में भी जो कुछ किया है,वह लोक लुभावना दिखता है। इस बजट के पीछे आपका कौन सा नजरिया या सोच दृष्टिगत होती है ?जवाब- अगर हम उद्योग धंधों या जनता की जेब से और पैसे किराये के रूप में ले लेते तो जरूरी नहीं था िक इससे ही रेलवे का कायाकल्प हो जाता। किराया बढ़ता तो आम आदमी पर ही और मार पड़ती। हम लोग जनता के ही नुमाइंदे हैं और चाहते हैं लोगों पर उतना ही भार लादा जाये जितना उनकी क्षमता हो। सामाजिक न्याय और गरीबो को लक्ष्य बना क र और इसी भाव को केद्रित कर मेरा रेल बजट बना है। हम किसी व्यक्ति या किसी इलाके से भेदभाव नहीं क रना चाहते हैं। हमें तो विरासत में रेलवे खस्ता हाल में मिली थी । उसको ठीक करने और बेहतर शक्ल बनाने की कोशिश कर रहा हूं। जो कुछ किया जा रहा है वह लोगों के सामने है। हमारा रेल बजट मंहगाई के मुंह पर तमाचा है। बिना किराया भाड़ा बढ़ाए अगर हमारा सरप्लस 20,000 करोड़ रू.से ज्यादा हो गया ,तो यह किसी जादू की छड़ी से नहीं काम करने से हुआ है। हमने सभी वर्गो के हित को ध्यान में रखा है गरीब, किसान ,विक लांग, बेरोजगार युवा, महिलाएं,सीनियर सिटिजन और हर नागरिक हमारे एजेंड़े में बजट तैयार करते समय रहा है। मैं एक आम आदमी और किसान मजदूर का बेटा हूं। स्वाभाविक तौर पर इनके बारे में सोचूंगा।
सवाल- तमाम आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं िक लाभ हानि के गणित को विचारे बिना जितनी भारी राशि रेलवे तमाम परियोजनाओं पर लगा रही है,उससे रेलवे की दीर्घकालिक सेहत पर बुरा असर तो नहीं पड़ेगा?जवाब-देखिए राष्ट्रपतिजी ने भी रेल मंत्रालय के कार्यकरण की तारीफ की है। इससे बड़ा और क्या सर्र्टिफिकेट हो सक ता है। रही बात अर्थशास्त्रियों की तो इसमें मुझे समझदारी नहीं दिखती िक आप भाड़ा बढ़ा दें और आपके हिस्से में माल ही न आए। सभी जानते हैं,रेलवे ट्रकों से सस्ता है। हमने थोड़ा अक ल लगा कर जो उपाय क र दिए है, ,उसका असर साफ दिख रहा है और माल यातायात में कितनी ज्यादा बढोत्तरी हो रही है। हमारा लागत खर्च (आपरेटिंग रेसियो) दुनिया में सबसे बेहतरीन स्तर पर आ गया है। हमने रिकार्ड लदान की ,रिकार्ड सवारियां रेल के पास आ रही हैं।
सवाल-आपने 11वीं योजना के दौरान भारी भरकम निवेश का जो तानाबाना बुना है उसे साकार करने के लिए संसाधनों की उपलब्धता भी एक अहम पक्ष है। दुर्गम इलाको में निजी क्षेत्र क्या दिलचस्पी लेगा?जवाब-पब्लिक प्राइवेट पार्र्टनरशिप निश्चय ही रंग लाएगी। मैं अकेले डिडिकेटेड फ्रेट कारिडोर की बात अगर क रूं तो इसी क्षेत्र में हमें काफी उम्मीद है। पूर्वी और पश्चिमी कारिडोर बनाने में 25,000 करोड़ रू. खर्च होंगे। हम चाहते हैं ,इस पर काम युद्दस्तर पर हो। हमारे आंतरिक साधन है,लोन है और मदद के लिए हम प्रधानमंत्री से वार्ता करेगे। दुनिया में लोन लेकर ज्यादा से ज्यादा काम हो रहे हैं,पर हम अपना भी काफी पैसा लगाएंगे। यह कारिडोर बना तो बाकी लाइनों पर जो भारी दबाव है वह कम होगा। कारिडोर बनने के बाद लोग लंबी दूरी में माल ट्रको से क्यों भेजेंगे,हमारा भाड़ा तो ट्रको से भी क म है। सड़को पर भीड़ भी क म होगी और हमारी रेल लाइनो पर भी आज जैसा भारी दबाव नहीं होगा। वह पूरी तरह विद्युतीकृत लाइन होगी और हरियाणा पंजाब से लेक र कई राज्यों यह परियोजना बहुत भला करेगी । लुधियाना,मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और क ई बंदरगाहों आदि पर इस परियोजना से कायाकल्प हो जाएगा। इन बातों को ही ध्यान में रख क र हमने 11 वीं योजना के अंत तक माल लदान 1100 मिलियन टन तथा यात्रियों को संख्या बढ़ा कर 840 करोड़ करने करने का लक्ष्य रखा है। ये लक्ष्य पूरे होंगे।
सवाल-यह कायाकल्प तो अपनी जगह है,देश की मुख्यधारा से क टे इलाको को रेल लाइन से जोडऩे , लंबित परियोजनाओं को साकार करने तथा क्षेत्रीय असंतुलन मिटाने की दिशा में क्या हो रहा है?
जवाब-गरीब पिछड़े और उपेक्षित इलाके हमारे एजेंडे का हिस्सा है। हर राज्य हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इन इलाको में आधारभूत ढांचे का विकास हमारी प्राथमिकता है। हम लोग योजनाबद्द तरीके से इस पर काम कर रहे हैं। नयी लाइन,आमान परिवर्तन, विद्युतीकरण से लेकर यात्री सुविधाओं सबमें पिछड़े इलाको पर हमारा ध्यान है। हमारी सोच में अगर गरीब और दलित पिछड़े लोग और इलाके न होते तो काठ की पटरी पर दशको से यात्रा क र रहे लोगों की सुविधा के लिए हम कु शन की गद्दी की बात न सोचते। औरतों को लोअर सीट , विक लांगो और बूढ़े लोगों के लिए विशेष सुविधा की बात हम क्यों क रते। सब्जीवाले या दूध विकरेताओं के लिए अलग से कोच की बात भी हमारी इसी परिकल्पना का हिस्सा हैं। इससे मुसाफिरों को काफी राहत मिलेगी। उपनगरीय यात्रियों की सुविधा भी हम बढ़ा रहे हैं। हम सभी वर्ग और हर नागरिक के कल्याण की बात सोचते हैं। मैं मानता हूं ,आधारभूत ढांचे के विकास की उपेक्षा लंबे समय तक हुई। रेलवे भी इससे अछूता नहीं रहा। पर लाभ के साथ सामाजिक दायित्व भी है। हम कोई भेदभाव नहीं करने देंगे। हम भारतीय रेल को विश्व स्तरीय बनाना चाहते हैं। इसी को ध्यान में रख कर मधेपुरा,डालमियानगर से लेकर रायबरेली जैसे पिछड़े इलाके में हम रेलवे कोच,वैगन, पहिया तथा धुरा जैसे कारखाने लगाने जा रहे हैं। गरीब रथ और तमाम रेलगाडियां गरीब और पिछड़े इलाको में हम चलाने जा रहे हैं। इन सबसे भारतीय रेल की कायापलट होगी।
सवाल-इस कायापलट का श्रेय आप किसको देते हैं?
जवाब-मैं श्रेय की राजनीति में नहीं पड़ता। हमारे 16 लाख रेल क र्मचारी ही हमारी बुनियाद है। अच्छा काम हो रहा है तो मैं इसका श्रेय भी मैं रेल कर्मचारी भाइयों को ही देता हूं। उनके कल्याण की दिशा में भी हमने कई क दम उठाए हैं और जैसे जैसे काम आगे बढ़ेगा,वे भी आगे बढ़ेगे।
सवाल-हाल में कई हादशों में यह साफ हुआ fक रेलवे आतंक वादियों के निशाने पर है। ऐसे में यात्रियों की विशेष सुरक्षा की दिशा में क्या क दम उठाने जा रहे हैं?
जवाब-इस दिशा में हम सजग हैं । तमाम नए सुरक्षा उपाय हो रहे है। आरपीएफ में 8000 रिक्त पदों को भरने,उनको साजो सामान से लैस करने, क्लोज सर्किट टीवी समेत सारे उपाय हो रहे हैं। डाग स्क्वायट बढाए जा रहे हैं,जबकि संवेदनशील मंडलों में विस्फोटको को खोजनेवाली मशीनें,मेटल डिटेक्टर और वीडियो कैमरे लग रहे हैं। यात्रियों की जानमाल की हिफाजत में हम अपने स्तर से कोई कोई कमी नहीं आने देगें। रेल संरक्षा की दिशा में भी तेजी से काम चल रहा है इसी नाते यातायात में भारी बढ़ोत्तरी होने के बावजूद रेल दुर्घटनाओं में बहुत कमी आयी है। रेल संरक्षा निधि के अधीन हो रहे सारे कार्य मार्च 2008 तक लक्ष्य बना कर पूरे कर लिए जाएंगे।
सवाल-अनुसंधान विकास तथा गति के मामले में बाकी रेलों की तुलना में भारतीय रेल अभी पीछे हैं। उच्च गति की दिशा में क्या नए कदम उठने जा रहे हैं?
जवाब-समय जैसे जैसे बदलता है,चेहरे भी बदलते हैं। हमारा प्रयास है िक 2-3 घंटे में चुनिदां खंडों पर ऐसी तेज रफ्तार गाडिय़ां चलें जो मुसाफिरों को महज दो तीन घंटे में गंतव्य तक पहुंचा दें। हमारे चुंनिंदा स्टेशन विश्व श्रेणी के बनें। ऐसे 600 स्टेशन हम हाथ में ले रहे हैं। भविष्य का खाका सबकी मदद से हम खींच रहे हैं। भारतीय रेल की एक मजबूत विश्वस्तरीय छवि बन रही है।
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
शनिवार, 16 अगस्त 2008
डॉ उदय शंकर अवस्थी से साक्षात्कार
स्वायत्ता के माहौल से सहकारिता आंदोलन को नयी दिशा,हौंसला और ऊर्जा मिली है
अरविंद कुमार सिंह
नयी दिल्ली । उर्वरक उद्योग की अंतर्राष्ट्रीय हस्ती और सहकारिता क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादन संस्था इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी का मानना है कि स्वायत्ता के नए माहौल से देश में सहकारिता क्षेत्र में एक नया उल्लास आया है और उसे ऊर्जा मिली हैं। उनका मानना है कि सरकारों को चाहिए कि वे सहकारिता को मुक्त करके राष्ट्रीय विकास में एक नया माहौल बनाऐं। श्री अवस्थी यह भी मानते हैं कि सब्सिडी को खैरात मानने का सरकारी नजरिया बदलना चाहिए। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के निवासी डॉ .अवस्थी देश की जानी मानी उर्वरक कम्पनियो के मुखिया तो रहे ही हैं,अतंर्राष्ट्रीय उर्वरक उद्योग संघ के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र में इस क्षेत्र से भारत के प्रतिनिधि के रूप में उन्होने बहुत मजबूत छाप छोड़ी। बेहद काबिल केमिकल इंजीनियर और प्रशासक तो वह हैं ही,कला और साहित्य के काफी पारखी भी हैं। उनको देश के सबसे बेहतरीन मुख्य कार्यकारी के रूप में सम्मानित किया जा चुका है । उत्तर प्रदेश गौरव समेत दर्जनों सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सदस्यता से नवाजे गए डॉ अवस्थी सहकारी क्षेत्र की स्वायत्ता के भी मुखर पैरोकार रहे हैं। १९९३ में इफको के प्रबंध निदेशक बने डॉ अवस्थी ने इस संस्था को दुनिया कि नामी - गिरामी और आदर्श संस्था बना दिया है इस संस्था के ५ विशाल कारखानों, एक किसान सेज से लेकर कई इतिहास बन रहे हैं । हाल के सालो में बीमा से लेकर संचार समेत कई क्षेत्रों में भी इफको ने सफलता से कदम रखा है। अगर आप डॉ अवस्थी से उनके दफ्तर में मिले तो यह देख कर जरूर हैरान होंगे कि उनकी मेज पर कोई फाइल नही है । यहां प्रस्तुत है ,बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ अवस्थी से बातचीत के मुख्य अंश-
सवाल -पिछले डेढ़-दो दशक में उर्वरक क्षेत्र में कई नीतिगत परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों को आप किस रूप में लेते हैं। इसका क्या नफा- नुकसान रहा ?
जवाब-नीतिगत फेरबदल कैसे भी हों हमने उनका लगातार स्वागत किया है। उर्वरक उद्योग से हम ४० सालों से जुड़े हैं और मानते हैं कि नीतियों का समय- समय पर फेरबदल देश और समाज के हित में बहुत जरूरी है। मगर मैं इस बात को बहुत बारीकी से देख रहा हूं कि नीतियों का जैसा क्रियान्वयन हो रहा है,उसमें स्पष्टता और स्थिरता का अभाव है और इसके साथ ही उसमें दूरदर्शिता बिल्कुल नहीं दिखायी पड़ती है। यही कारण है कि इन नीतियों के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं और स्वाभाविक तौर पर इफको और बाकी उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहता है।
दूसरी बात सब्सिडी से जुड़ी है। यह समझने की बात है कि सब्सिडी किसको दी जा रही है। कच्चे माल का दाम भारत सरकार तय करती है,खाद का दाम भी इसी तरह तय होता है। बीच के अंतर को सब्सिडी के रूप में देने को इस नजरिए से देखना बंद करना होगा कि हम कोई चैरिटी या खैरात दे रहे हैं। मगर मनोदशा ऐसी बन गयी है गोया खैरात दी जा रही है। ऐसी बातों से उर्वरक उद्योग की साख प्रभावित हो रही है। इस दृष्टिकोण को हमें बदलना होगा।
सवाल-आखिर लंबे समय से जो नजरिया बना है,वह बदल कैसे सकता है?
जवाब-देखिए,कारपोरेट गवर्नेंस में एक प्राइड होता है। वे लागत कम करने के लिए अपने तंत्र को और मजबूत बना रहे हैं और नयी कोशिशें कर रहे हैं। पर सरकार जब एक मापक तय कर लेती है तो उससे सोचने और काम की क्षमता का अभाव होने लगता है। यह मूलमंत्र हो गया है कि हमको इफीसिएंसी का मापक करना है। वहीं दूसरी और अक्षम उद्योग को जीवित रखने की कोशिश भी की जा रही है,इन सबके बीच स्वाभाविक रूप से जो विरोधाभास दिखता है,उससे उबरने की जरूरत है। भारतीय उर्वरक उद्योग दुनिया में अपनी सक्षमता के लिए जाना जाता है और हमारी ओर से लगातार इसे बुलंदी पर ले जाने की कोशिश की जा रही है।
सवाल-मगर दुनिया भर में सब्सिडी घटाने की बात हो रही है। हम पर भी दबाव हैं,ऐसे में सब्सिडी तो लगातार घटनी ही है ?
जवाब-सब्सिडी बेशक घटाया जाये पर ऐसा नहीं होना चाहिए कि मुर्गी ही हलाल हो जाए-हमारा उद्योग ही बंद हो जाये। इस समय यही हालत दिख रही है। जिसके कारण विदेशो में भी दाम बढ़ गए है। अब सवाल यह उठता है कि विदेश में उर्वरक सस्ते हैं। सच्चाई तो यह है कि हम जो कच्चा माल ले रहे हैं,वह विदेशों की तुलना मे छह फीसदी ज्यादा है। अगर हमको विदेशी दाम में ही कच्चा माल मिल जाये तो दुनिया में हम सबसे सस्ता उर्वरक मुहैया करा सकते हैं। मैं सारे तथ्यों को देख कर इस मत का हूं कि अगर एक व्यवस्थित तंत्र बनाना है तो ३ डालर प्रति ब्रिटिश थर्मल यूनिट हरेक को बिजली देने की व्यवस्था कर दी जाये। इससे देश का नक्शा ही बदल जाएगा। परिवहन,उद्योग,रेल और सभी क्षेत्रों का इससे कायाकल्प होगा,ये वायवल हो जाऐंगे। सारे देश में इसी एक समान मूल्य यानि दो सवा दो रूपए यूनिट पर बिजली मिले तो हम लोग भी यूरिया को ६५०० रूपए प्रति टन यानि ६ रूपए प्रति किलोग्राम दे सकते हैं। बाकी सारी सब्सिडी आप बंद कर दें और केवल यही कर दें तो देखिए देश कहां से कहां जाता है। इसके बाद आप चाहें तो मार्केट फोर्स को ओपेन कर दें,आयात और निर्यात जैसा चाहें,होने दें तो रोजगार के भी असीमित मौके बढ़ेंगे।
सवाल-सहकारी क्षेत्र में स्वायत्ता की आप लगातार पैरोकारी करते रहे थे। नए सहकारिता अधिनियम के बाद आपको माहौल में कुछ बदलाव दिख रहा है क्या?
जवाब-सहकारी क्षेत्र का जहां तक सवाल है,बहुराज्य सहकारी अधिनियम ने हमें स्वायत्ता दी है। हम लोग प्रधानमंत्री,कृषि मंत्री के विशेष आभारी हैं जिसके नाते आज पूरी दुनिया हमारे सामने खुल गयी है। एक नया जोश इसने भर दिया है और हमें नयी ऊर्जा मिल रही है। इसका सकारात्मक असर भी दुनिया देख रही है। दुनिया भर के देश भारत को हैपनिंग प्लेस के रूप में निरूपित कर रहे हैं। हमें खुशी है कि सरकार सुधार की ओर जा रही है,इसमें और जोर से जुटा जाये और सरकारी तंत्र का भी सुधार हो तो बहुत सकारात्मक माहौल बनेगा और देश की बहुत तेजी से उन्नति होगी। उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में भी ध्यान देगी।
सवाल-मगर यूपी बिहार में तो सहकारिता की दशा बहुत खराब है,यह कैसे सुधरेगी?
जबाव-आप गलत सोच रहे हैं। बिहार में सहकारिता की हालत सुधर रही है। बिहार सरकार ने स्वावलंबी सहकारी समिति अधिनियम बना जो कदम उठाया है उससे एक नया माहौल बन रहा है। आंध्रप्रदेश में भी कानून बन गया है मैं समझता हूं कि सहकारिता के क्षेत्र को सरकारें मुक्त कर दें तो इस आंदोलन और जनता का बड़ा भला होगा।
सवाल-इफको लगातार मुनाफा कमा रहा है,विस्तार हो रहा है,जबकि इस उद्योग की दिशा तमाम जगह ठीक नहीं है। इतना बेहतर प्रबंधन और गुडविल बना पाना आखिर कैसे संभव हुआ है?
जवाब-इफको एक अच्छे इरादे से शुरू किया गया था। जिस चीज की शुरूआत भी अच्छे इरादे से होती है,सदभावना के साथ होती है,वहां चीजें ठीक ही रहती हैं। इफको में सरकार और सहकारिता क्षेत्र का पैसा लगा पर उसके प्रबंधन के लिए बेहद कर्मठ कारपोरेट और मैनेजर लिए गए। कारण यह था कि यह हाईटेक का क्षेत्र था। संयत्र प्रबंधन के लिए तो आपको बेहतर टेक्नोक्रेट ही चाहिए। यह काम हमने किया । दूसरा काम यह हुआ कि मालिको (शेयरहोल्डर्स) ने मार्केटिंग के द्वारा एक अच्छा तंत्र बनाया और उनको फायदा हुआ। तो शुरू से ही इफको नें अच्छे कामों की परंपरा बनी रही है। हमारी भावना काम करने की है और अपनी क्षमताओं के मुताबिक यथासंभव काम में लगे हैं। इंडियन फार्म फारेस्ट्री के मार्फत सामाजिकी वानिकी की दिशा में काम हों या फिर गांवों को गोद में लेकर उनका समग्र विकास तथा किसानो की दशा सुधारने की कोशिश,अस्पताल,स्कूल ,गरीब किसानो की मदद के लिए किसान सेवा फंड,संयंत्रों के क्षेत्र में स्थानीय विकास के प्रयास हमारी ओर से लगातार चल रहे हैं। हमारा काम भी एकदम पारदर्शी है। फेवर एकदम नहीं है,यह तो मैं नहीं कहता पर नाममात्र का ही होगा। कोई भेदभाव नहीं है। हमें अपने कामकाज पर संतोष भी है। काम विकेन्द्रित है,किसी को सीधे ऊपर जाने की जरूरत नहीं। हमारे सहयोगी भी समर्पण से काम करते हैं। सकारात्मक कामो की हम सराहना करते हैं और नकारात्मक कामों को हतोत्साहित करते हैं। ऐसे मे बेहतर माहौल और कार्यसंस्कृति तो बननी ही है।
सवाल-उर्वरक उद्योग का भविष्य आपको कैसा लगता है ?
जवाब- किसान का भविष्य,उर्वरक उद्योग का भविष्य और देश का भविष्य एक दूसरे पर निर्भर है। किसी एक के भविष्य के साथ कोई प्रभाव पड़ेगा तो समानांतर रूप से दूसरा प्रभावित होगा ही। हम चाहते है कि उर्वरक क्षेत्र को एक सकारात्मक नजरिए से देखा जाये। सरकार ,उर्वरक क्षेत्र और किसान भागीदार हैं और उनको भागीदार की भूमिका निभानी चाहिए। उर्वरक मंत्री, एसोसिएशन और विभाग के के बीच एक सकारात्मक संवाद का माहौल बना है। कभी-कभी अवरोध आते हैं,पर बेहतर भावना से हम काम करते रहे तो अवरोधको के हटने में भी समय नहीं लगेगा। मैं देश के उज्जवल भविष्य के प्रति बहुत आशान्वित हूं।
सवाल-यह समस्या साफ दिख रही है कि हरित क्रांति के इलाको में काफी असंतुलित उर्वरक उपयोग हो रहा है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है। इसे कैसे रोका जा सकता है?
जवाब-मूल्य नीति संतुलित न होने के नाते उर्वरको का असंतुलित इस्तेमाल हो रहा है। इस दिशा मे सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। जहां तक जैव उर्वरको का सवाल है,उस दिशा में भी हम लोग काफी प्रयास कर रहे हैं। हमारा मत हैं कि बायोकेमिकल आर्गेनिक और ग्रीन मैन्युर का संतुलित उपयोग होना चाहिए। हम इस बात पर हर स्तर पर बल दे रहे हैं। हम यह भी मानते है कि देश का किसान बहुत बुद्धिमान है और कई जगह संतुलित उपयोग हो भी रहा है,पर जहां तक जैव उर्वरको का सवाल है,दिककत यह है कि गोबर का ज्यादातर उपयोग उपले बनाने में हो रहा है। अगर बिजली यानि ऊर्जा देश भर में एक दाम पर सर्वसुलभ हो जाये तो यह समस्या नियंत्रित हो सकती है।
सवाल-इफ्को की भावी योजनाऐं क्या हैं और उनका चरणबद्ध रूप से कैसे क्रियान्वयन हो रहा है ?
जवाब-कई परियोजनाओं पर हमारा काम चल रहा है। हम एक वाणिज्यक बैंक स्थापित करने जा रहे हैं जिसका सारा जोर देहात पर होगा। इस बैंक के लिए रिजर्व बैंक की अनुमति भी हमें मिल गयी है। विजन २०१० में हमारा कारोबार लक्ष्य १५ हजार करोड़ करना है। इसके अलावा हम किसानों के लिए बाजार खोलने जा रहे हैं,जो हर तहसील में खुलेगा और किसानो की जरूरत की सारी जीचें वहां मिलेंगी। इस बाजार मे पारदर्शिता के लिए सारी जीचें कंप्यूटर के माध्यम से बेची खरीदी जाऐंगी। इस बाजार में कि सान अपनी उपज भी उचित मूल्य पर बेच सकेगा। छत्तीसगढ़ में ५०० मेगावाट का हमारा पावर प्लांट भी लग रहा है। किसान सेज समेत कई दिशा में हमारा काम चल रहा है ।बीमा के क्षेत्र में हम प्रवेश कर लाभ कमा रहे हैं। हमारी ओमान परियोजना आकर ले चुकी है । बहुत सी चीजें हैं पर धीरे-धीरे व्यवस्थित तरीके से हम आगे बढऩा चाहते हैं।
——( जनसत्ता एक्सप्रेस और इंडियन एक्सप्रेस के लिए २००५ में लिए गए साक्षात्कार का मुख्य अंश) ——----
अरविंद कुमार सिंह
नयी दिल्ली । उर्वरक उद्योग की अंतर्राष्ट्रीय हस्ती और सहकारिता क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादन संस्था इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी का मानना है कि स्वायत्ता के नए माहौल से देश में सहकारिता क्षेत्र में एक नया उल्लास आया है और उसे ऊर्जा मिली हैं। उनका मानना है कि सरकारों को चाहिए कि वे सहकारिता को मुक्त करके राष्ट्रीय विकास में एक नया माहौल बनाऐं। श्री अवस्थी यह भी मानते हैं कि सब्सिडी को खैरात मानने का सरकारी नजरिया बदलना चाहिए। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के निवासी डॉ .अवस्थी देश की जानी मानी उर्वरक कम्पनियो के मुखिया तो रहे ही हैं,अतंर्राष्ट्रीय उर्वरक उद्योग संघ के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र में इस क्षेत्र से भारत के प्रतिनिधि के रूप में उन्होने बहुत मजबूत छाप छोड़ी। बेहद काबिल केमिकल इंजीनियर और प्रशासक तो वह हैं ही,कला और साहित्य के काफी पारखी भी हैं। उनको देश के सबसे बेहतरीन मुख्य कार्यकारी के रूप में सम्मानित किया जा चुका है । उत्तर प्रदेश गौरव समेत दर्जनों सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सदस्यता से नवाजे गए डॉ अवस्थी सहकारी क्षेत्र की स्वायत्ता के भी मुखर पैरोकार रहे हैं। १९९३ में इफको के प्रबंध निदेशक बने डॉ अवस्थी ने इस संस्था को दुनिया कि नामी - गिरामी और आदर्श संस्था बना दिया है इस संस्था के ५ विशाल कारखानों, एक किसान सेज से लेकर कई इतिहास बन रहे हैं । हाल के सालो में बीमा से लेकर संचार समेत कई क्षेत्रों में भी इफको ने सफलता से कदम रखा है। अगर आप डॉ अवस्थी से उनके दफ्तर में मिले तो यह देख कर जरूर हैरान होंगे कि उनकी मेज पर कोई फाइल नही है । यहां प्रस्तुत है ,बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ अवस्थी से बातचीत के मुख्य अंश-
सवाल -पिछले डेढ़-दो दशक में उर्वरक क्षेत्र में कई नीतिगत परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों को आप किस रूप में लेते हैं। इसका क्या नफा- नुकसान रहा ?
जवाब-नीतिगत फेरबदल कैसे भी हों हमने उनका लगातार स्वागत किया है। उर्वरक उद्योग से हम ४० सालों से जुड़े हैं और मानते हैं कि नीतियों का समय- समय पर फेरबदल देश और समाज के हित में बहुत जरूरी है। मगर मैं इस बात को बहुत बारीकी से देख रहा हूं कि नीतियों का जैसा क्रियान्वयन हो रहा है,उसमें स्पष्टता और स्थिरता का अभाव है और इसके साथ ही उसमें दूरदर्शिता बिल्कुल नहीं दिखायी पड़ती है। यही कारण है कि इन नीतियों के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं और स्वाभाविक तौर पर इफको और बाकी उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहता है।
दूसरी बात सब्सिडी से जुड़ी है। यह समझने की बात है कि सब्सिडी किसको दी जा रही है। कच्चे माल का दाम भारत सरकार तय करती है,खाद का दाम भी इसी तरह तय होता है। बीच के अंतर को सब्सिडी के रूप में देने को इस नजरिए से देखना बंद करना होगा कि हम कोई चैरिटी या खैरात दे रहे हैं। मगर मनोदशा ऐसी बन गयी है गोया खैरात दी जा रही है। ऐसी बातों से उर्वरक उद्योग की साख प्रभावित हो रही है। इस दृष्टिकोण को हमें बदलना होगा।
सवाल-आखिर लंबे समय से जो नजरिया बना है,वह बदल कैसे सकता है?
जवाब-देखिए,कारपोरेट गवर्नेंस में एक प्राइड होता है। वे लागत कम करने के लिए अपने तंत्र को और मजबूत बना रहे हैं और नयी कोशिशें कर रहे हैं। पर सरकार जब एक मापक तय कर लेती है तो उससे सोचने और काम की क्षमता का अभाव होने लगता है। यह मूलमंत्र हो गया है कि हमको इफीसिएंसी का मापक करना है। वहीं दूसरी और अक्षम उद्योग को जीवित रखने की कोशिश भी की जा रही है,इन सबके बीच स्वाभाविक रूप से जो विरोधाभास दिखता है,उससे उबरने की जरूरत है। भारतीय उर्वरक उद्योग दुनिया में अपनी सक्षमता के लिए जाना जाता है और हमारी ओर से लगातार इसे बुलंदी पर ले जाने की कोशिश की जा रही है।
सवाल-मगर दुनिया भर में सब्सिडी घटाने की बात हो रही है। हम पर भी दबाव हैं,ऐसे में सब्सिडी तो लगातार घटनी ही है ?
जवाब-सब्सिडी बेशक घटाया जाये पर ऐसा नहीं होना चाहिए कि मुर्गी ही हलाल हो जाए-हमारा उद्योग ही बंद हो जाये। इस समय यही हालत दिख रही है। जिसके कारण विदेशो में भी दाम बढ़ गए है। अब सवाल यह उठता है कि विदेश में उर्वरक सस्ते हैं। सच्चाई तो यह है कि हम जो कच्चा माल ले रहे हैं,वह विदेशों की तुलना मे छह फीसदी ज्यादा है। अगर हमको विदेशी दाम में ही कच्चा माल मिल जाये तो दुनिया में हम सबसे सस्ता उर्वरक मुहैया करा सकते हैं। मैं सारे तथ्यों को देख कर इस मत का हूं कि अगर एक व्यवस्थित तंत्र बनाना है तो ३ डालर प्रति ब्रिटिश थर्मल यूनिट हरेक को बिजली देने की व्यवस्था कर दी जाये। इससे देश का नक्शा ही बदल जाएगा। परिवहन,उद्योग,रेल और सभी क्षेत्रों का इससे कायाकल्प होगा,ये वायवल हो जाऐंगे। सारे देश में इसी एक समान मूल्य यानि दो सवा दो रूपए यूनिट पर बिजली मिले तो हम लोग भी यूरिया को ६५०० रूपए प्रति टन यानि ६ रूपए प्रति किलोग्राम दे सकते हैं। बाकी सारी सब्सिडी आप बंद कर दें और केवल यही कर दें तो देखिए देश कहां से कहां जाता है। इसके बाद आप चाहें तो मार्केट फोर्स को ओपेन कर दें,आयात और निर्यात जैसा चाहें,होने दें तो रोजगार के भी असीमित मौके बढ़ेंगे।
सवाल-सहकारी क्षेत्र में स्वायत्ता की आप लगातार पैरोकारी करते रहे थे। नए सहकारिता अधिनियम के बाद आपको माहौल में कुछ बदलाव दिख रहा है क्या?
जवाब-सहकारी क्षेत्र का जहां तक सवाल है,बहुराज्य सहकारी अधिनियम ने हमें स्वायत्ता दी है। हम लोग प्रधानमंत्री,कृषि मंत्री के विशेष आभारी हैं जिसके नाते आज पूरी दुनिया हमारे सामने खुल गयी है। एक नया जोश इसने भर दिया है और हमें नयी ऊर्जा मिल रही है। इसका सकारात्मक असर भी दुनिया देख रही है। दुनिया भर के देश भारत को हैपनिंग प्लेस के रूप में निरूपित कर रहे हैं। हमें खुशी है कि सरकार सुधार की ओर जा रही है,इसमें और जोर से जुटा जाये और सरकारी तंत्र का भी सुधार हो तो बहुत सकारात्मक माहौल बनेगा और देश की बहुत तेजी से उन्नति होगी। उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में भी ध्यान देगी।
सवाल-मगर यूपी बिहार में तो सहकारिता की दशा बहुत खराब है,यह कैसे सुधरेगी?
जबाव-आप गलत सोच रहे हैं। बिहार में सहकारिता की हालत सुधर रही है। बिहार सरकार ने स्वावलंबी सहकारी समिति अधिनियम बना जो कदम उठाया है उससे एक नया माहौल बन रहा है। आंध्रप्रदेश में भी कानून बन गया है मैं समझता हूं कि सहकारिता के क्षेत्र को सरकारें मुक्त कर दें तो इस आंदोलन और जनता का बड़ा भला होगा।
सवाल-इफको लगातार मुनाफा कमा रहा है,विस्तार हो रहा है,जबकि इस उद्योग की दिशा तमाम जगह ठीक नहीं है। इतना बेहतर प्रबंधन और गुडविल बना पाना आखिर कैसे संभव हुआ है?
जवाब-इफको एक अच्छे इरादे से शुरू किया गया था। जिस चीज की शुरूआत भी अच्छे इरादे से होती है,सदभावना के साथ होती है,वहां चीजें ठीक ही रहती हैं। इफको में सरकार और सहकारिता क्षेत्र का पैसा लगा पर उसके प्रबंधन के लिए बेहद कर्मठ कारपोरेट और मैनेजर लिए गए। कारण यह था कि यह हाईटेक का क्षेत्र था। संयत्र प्रबंधन के लिए तो आपको बेहतर टेक्नोक्रेट ही चाहिए। यह काम हमने किया । दूसरा काम यह हुआ कि मालिको (शेयरहोल्डर्स) ने मार्केटिंग के द्वारा एक अच्छा तंत्र बनाया और उनको फायदा हुआ। तो शुरू से ही इफको नें अच्छे कामों की परंपरा बनी रही है। हमारी भावना काम करने की है और अपनी क्षमताओं के मुताबिक यथासंभव काम में लगे हैं। इंडियन फार्म फारेस्ट्री के मार्फत सामाजिकी वानिकी की दिशा में काम हों या फिर गांवों को गोद में लेकर उनका समग्र विकास तथा किसानो की दशा सुधारने की कोशिश,अस्पताल,स्कूल ,गरीब किसानो की मदद के लिए किसान सेवा फंड,संयंत्रों के क्षेत्र में स्थानीय विकास के प्रयास हमारी ओर से लगातार चल रहे हैं। हमारा काम भी एकदम पारदर्शी है। फेवर एकदम नहीं है,यह तो मैं नहीं कहता पर नाममात्र का ही होगा। कोई भेदभाव नहीं है। हमें अपने कामकाज पर संतोष भी है। काम विकेन्द्रित है,किसी को सीधे ऊपर जाने की जरूरत नहीं। हमारे सहयोगी भी समर्पण से काम करते हैं। सकारात्मक कामो की हम सराहना करते हैं और नकारात्मक कामों को हतोत्साहित करते हैं। ऐसे मे बेहतर माहौल और कार्यसंस्कृति तो बननी ही है।
सवाल-उर्वरक उद्योग का भविष्य आपको कैसा लगता है ?
जवाब- किसान का भविष्य,उर्वरक उद्योग का भविष्य और देश का भविष्य एक दूसरे पर निर्भर है। किसी एक के भविष्य के साथ कोई प्रभाव पड़ेगा तो समानांतर रूप से दूसरा प्रभावित होगा ही। हम चाहते है कि उर्वरक क्षेत्र को एक सकारात्मक नजरिए से देखा जाये। सरकार ,उर्वरक क्षेत्र और किसान भागीदार हैं और उनको भागीदार की भूमिका निभानी चाहिए। उर्वरक मंत्री, एसोसिएशन और विभाग के के बीच एक सकारात्मक संवाद का माहौल बना है। कभी-कभी अवरोध आते हैं,पर बेहतर भावना से हम काम करते रहे तो अवरोधको के हटने में भी समय नहीं लगेगा। मैं देश के उज्जवल भविष्य के प्रति बहुत आशान्वित हूं।
सवाल-यह समस्या साफ दिख रही है कि हरित क्रांति के इलाको में काफी असंतुलित उर्वरक उपयोग हो रहा है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है। इसे कैसे रोका जा सकता है?
जवाब-मूल्य नीति संतुलित न होने के नाते उर्वरको का असंतुलित इस्तेमाल हो रहा है। इस दिशा मे सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। जहां तक जैव उर्वरको का सवाल है,उस दिशा में भी हम लोग काफी प्रयास कर रहे हैं। हमारा मत हैं कि बायोकेमिकल आर्गेनिक और ग्रीन मैन्युर का संतुलित उपयोग होना चाहिए। हम इस बात पर हर स्तर पर बल दे रहे हैं। हम यह भी मानते है कि देश का किसान बहुत बुद्धिमान है और कई जगह संतुलित उपयोग हो भी रहा है,पर जहां तक जैव उर्वरको का सवाल है,दिककत यह है कि गोबर का ज्यादातर उपयोग उपले बनाने में हो रहा है। अगर बिजली यानि ऊर्जा देश भर में एक दाम पर सर्वसुलभ हो जाये तो यह समस्या नियंत्रित हो सकती है।
सवाल-इफ्को की भावी योजनाऐं क्या हैं और उनका चरणबद्ध रूप से कैसे क्रियान्वयन हो रहा है ?
जवाब-कई परियोजनाओं पर हमारा काम चल रहा है। हम एक वाणिज्यक बैंक स्थापित करने जा रहे हैं जिसका सारा जोर देहात पर होगा। इस बैंक के लिए रिजर्व बैंक की अनुमति भी हमें मिल गयी है। विजन २०१० में हमारा कारोबार लक्ष्य १५ हजार करोड़ करना है। इसके अलावा हम किसानों के लिए बाजार खोलने जा रहे हैं,जो हर तहसील में खुलेगा और किसानो की जरूरत की सारी जीचें वहां मिलेंगी। इस बाजार मे पारदर्शिता के लिए सारी जीचें कंप्यूटर के माध्यम से बेची खरीदी जाऐंगी। इस बाजार में कि सान अपनी उपज भी उचित मूल्य पर बेच सकेगा। छत्तीसगढ़ में ५०० मेगावाट का हमारा पावर प्लांट भी लग रहा है। किसान सेज समेत कई दिशा में हमारा काम चल रहा है ।बीमा के क्षेत्र में हम प्रवेश कर लाभ कमा रहे हैं। हमारी ओमान परियोजना आकर ले चुकी है । बहुत सी चीजें हैं पर धीरे-धीरे व्यवस्थित तरीके से हम आगे बढऩा चाहते हैं।
——( जनसत्ता एक्सप्रेस और इंडियन एक्सप्रेस के लिए २००५ में लिए गए साक्षात्कार का मुख्य अंश) ——----
शुक्रवार, 15 अगस्त 2008
गांधीजी हैं हमारे ब्रांड एम्बेसडर -कुमुद जोशी
अरविंद कुमार सिंह
खादी क्षेत्र को भूमंडलीकरण या मुक्त अर्थव्यवस्था से घबराने या चिंतित होने की जरूरत नहीं है। खादी आजादी के आंदोलन के साथ पनपी है और इसे जनता ने खुले दिल से गले लगाया है। खादी को आजादी का परिधान बनने का मौका भी मिला। इसी नाते हमारे पास एक गौरवशाली परंपरा है। खादी क्षेत्र तीन 3 लाख से ज्यादा गांवो में 70 लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार के मौके उपलव्ध करा रहा है और समय के साथ बदलते हुए नयी भूमिका में खड़ा है। यह कहना है खादी ग्रामोद्योग आयोग की मुखिया सुश्री कुमुद जोशी ने कई सवालों पर अपनी बेबाक राय रखी और कहा िक इस क्षेत्र में विकास की विराट संभावनाएं हैं। पेश है उनके इंटरव्यू का खास अंश -
सवाल -खादी के समक्ष मंडरा रहे खतरों के प्रति आयोग कहाँ तक सचेत है ?
कुमुद जोशी -खादी और गांधीजो ·ो अलग नहीं किया जा सकता है। वास्तवि·ता तो यह है fक गांधी जी हमारे ब्रांड अंबेस्डर हैं। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने गांधी जी को विश्व स्तर पर मान्यता देते हुए विश्व अहिंसा दिवस की शुरूआत की । पुरी दुनिया ने आज गांधीजी को स्वीकार क र लिया है। इस नाते हमारे लिए दुनिया के बाजार में अपनी मजबूत पहचान बनाने में कोई दिक्कत नहीं आनेवाली है। पर हमारा खास ध्यान गांव-देहात पर ही है, जहां आज भी देश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी रह रही है। 1933 में ही गांधीजी ने कहा था िक सबको शहरों में ले जाना संभव नहीं है। ऐसे में गांवो में बेहतर जिंदगी देने के लिए गतिविधियों का विस्तार होना चाहिए। हमारा प्रयास इन गांवो को बेहतर बनाने की दिशा में सबसे ज्यादा है। इसमें सामाजिक और आर्थिक दोनो उद्देश्य निहित हैं।
सवाल-लेकिन देहाती उद्योगों पर भी नयी अर्थनीति व भूमंडलीकरण की मार साफ़ देखने को मिल रही,इस चुनौती से निपटने की क्या योजना है ?
कुमुद जोशी -हमे उनसे चुनौती नहीं है । जहां हम पहुंच रहे हैं,वहां कोई और नहीं पहुंच रहा है। खादी एक आंदोलन है। बीच में जो भी उतार-चढ़ाव आए हों पर इसके विकास के विकास के लिए नए प्रयास चल रहे हैं और समय के साथ खादी क्षेत्र भी बदल रहा है। हमने नए उत्पादों के लिए खादी इंडिया ब्रांड नाम शुरू किया गया है। युवाओं को आकर्षित करने के लिए विशेष योजनाएं चल रही है और फैशन को भी देखते हुए हम लोग डिजायनर खादी के उत्पाद तैयार क र रहे हैं। हमारी अपनी विशिष्टताएं हैं। खादी के अलावा बाजार में आपको कहीं भी शत प्रतिशत शुद्द पड़ा नहीं मिलेगा। काटन तो हमारा ही 100 फीसदी शुद्द है। ऐसे में हमारा खास ध्यान वैराइटी, डिजाइन और फैशन पर है। इसके लिए हम निफ्ट जैसी संस्थाओं की मदद भी हम ले रहे हैं। कम दाम पर हमारे उत्पाद बिना मिलावट के आम जनता के लिए उपलव्ध हैं। इसी नाते खादी में लोगों का विश्वास है। तभी रेलवे जैसी संस्थाएं हमसे बेड सीट, कम्बल और अन्य उत्पादों के साथ शुद्द सरसों का तेल भी खरीद रहे हैं। हाल में रेल मंत्री ने एक बैठक में मुझसे शुद्द सरसो के तेल की मांग की ,जिसे हम बड़ी मात्रा में आपूर्ति कर रहे हैं।
सवाल- पर खादी को लेकर युवाओं में खास जोश क्यों नहीं दिखता?
कुमुद जोशी -देखिये ,भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। इस पर हमारी निगाह है। हम युवाओं को अपने अभियान का हिस्सा बनाना चाहते हैं. स्कूलों में खादी के उपयोग को बढावा देने के लिए हमारे प्रयास चल रहे हैं। इसी के साथ हमारे पास जो 7050 आउटलेट हैं,उन सबको हम आधुनिक बना रहे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने राजधानी में चार और आउटलेट खोलने की बात कही है। हम चाहतें हैं नयी संस्थाएं भी इस काम में आगे आएं। हमारा सिर्फ इस बात पर जोर है िक केवल प्रमाणित खादी बिकनी चाहिए। हम इस में कोई समझौता नहीं क रेंगे। ई-चरखा को भी हम बढ़ावा दे रहे हैं। यह खुद बिजली पैदा करेगा। 2 बल्ब भी इससे जलते हैं और शाम को रसोई में उजाला रहने के साथ रेडियो सुना जा सकता है और मोबाइल भी चार्ज हो सकता है।
सवाल-कुमुद जी खादी के कारीगरों की हालत काफी खराब मानी जाती है,उसको सही करने की दिशा में भी ध्यान है क्या ?
कुमुद जोशी - सुदूर गांवो में बैठे लोग अगर प्रयास करें तो अच्छी खासी आय हासिल कर सकते हैं। राजस्थान एक मजदूर तेजाराम ने पांच माह में काटन खादी में 35,000 रू. हासिल किए और पुरस्कार पाया । इसी तरह वली मोहम्मद ने 16230 रू. हासिल किए । अगर किसी को घर बैठे पार्ट टाइम काम से इतना पैसा मिल जाये तो उनकी दशा में सुधार होगा ही. जब मैने प्रभार लिया तो इस बात पर खास तौर पर ध्यान दिया की कई मंत्रालयों में एक तरह की योजनाएं चल रही हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय भी चरखा, शोरूम तथा करघों के काम में मदद करता है, तो कपड़ा मंत्रालय के पास भी कई योजनाएं हैं। इसी तरह महिला और बाल विकास मंत्रालय, सामा· अधिकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, सिडबी ,विश्व बैंक की अपनी कई योजनाएं हैं। हमने इन के साथ तालमेल का प्रयास किया । हमारा प्रयास था,अगर ग्रामीण विकास लक्ष्य है तो फिर पैसा भी चैनलाइज होना चाहिए। कन्वर्जन का नया मंत्र अब कम कर रहा है। केन्द्र , राज्य तथा जिला तंत्र की मदद से खादी संस्थाएं तथा अच्छा काम करनेवाले एनजीओ को हम आगे ला रहे हैं। पहले लोगों को लगता था,यह संभव नही है ? पर कुछ प्रयोगों की सफलता से लगने लगा है , नए रोजगार के काफी मौके पैदा हो सकते हैं। झालावाड़ा विनोवा समिति के प्रयास से हमने रिकार्ड समय में दो बेहद दुर्गम गांवो में केवल दो महीने में बिजली ,पानी, पक्की रोड , सफाई सुविधा सब पहुंचा दी। म.प्र· की सीमा से लगे राजस्थान के इन गावों में कम के लिए उस राज्य से भी मजदूर पहुंच रहे हैं। अगर सभी कार्यक्रमों को गमभीरता से लिया जाये तो समाज के आखिरी व्यक्ति को लाभ कैसे नहीं मिलेगा ।
सवाल-खादी -ग्राम उद्योग का आगे किस पर खास जोर रहेगा?
कुमुद जोशी परंपरागत की जगह नया करने का प्रयास हो रहा है। कई क्षेत्र में नए कम हो रहे हैं। अगर अच्छा उत्पाद होगा तो उसकी अच्छी कीमत मिलेगी। हम आधुनिक चरखों के साथ लूम में भी बदलाव ला रहे हैं। इन प्रयासों से खादी क्षेत्र का आत््मविश्वास बढ़ा है। बीच में खादी क्षेत्र की हालत खराब होने लगी थी यह बात सबको पता है। राज्य सरकारे खादी क्षेत्र को पर्याप्त सहयोग दे रही हैं। गांव या युवाओं को रोजगार मिले तो कौन सा दल इसका विरोध करेगा ?
खादी क्षेत्र को भूमंडलीकरण या मुक्त अर्थव्यवस्था से घबराने या चिंतित होने की जरूरत नहीं है। खादी आजादी के आंदोलन के साथ पनपी है और इसे जनता ने खुले दिल से गले लगाया है। खादी को आजादी का परिधान बनने का मौका भी मिला। इसी नाते हमारे पास एक गौरवशाली परंपरा है। खादी क्षेत्र तीन 3 लाख से ज्यादा गांवो में 70 लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार के मौके उपलव्ध करा रहा है और समय के साथ बदलते हुए नयी भूमिका में खड़ा है। यह कहना है खादी ग्रामोद्योग आयोग की मुखिया सुश्री कुमुद जोशी ने कई सवालों पर अपनी बेबाक राय रखी और कहा िक इस क्षेत्र में विकास की विराट संभावनाएं हैं। पेश है उनके इंटरव्यू का खास अंश -
सवाल -खादी के समक्ष मंडरा रहे खतरों के प्रति आयोग कहाँ तक सचेत है ?
कुमुद जोशी -खादी और गांधीजो ·ो अलग नहीं किया जा सकता है। वास्तवि·ता तो यह है fक गांधी जी हमारे ब्रांड अंबेस्डर हैं। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने गांधी जी को विश्व स्तर पर मान्यता देते हुए विश्व अहिंसा दिवस की शुरूआत की । पुरी दुनिया ने आज गांधीजी को स्वीकार क र लिया है। इस नाते हमारे लिए दुनिया के बाजार में अपनी मजबूत पहचान बनाने में कोई दिक्कत नहीं आनेवाली है। पर हमारा खास ध्यान गांव-देहात पर ही है, जहां आज भी देश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी रह रही है। 1933 में ही गांधीजी ने कहा था िक सबको शहरों में ले जाना संभव नहीं है। ऐसे में गांवो में बेहतर जिंदगी देने के लिए गतिविधियों का विस्तार होना चाहिए। हमारा प्रयास इन गांवो को बेहतर बनाने की दिशा में सबसे ज्यादा है। इसमें सामाजिक और आर्थिक दोनो उद्देश्य निहित हैं।
सवाल-लेकिन देहाती उद्योगों पर भी नयी अर्थनीति व भूमंडलीकरण की मार साफ़ देखने को मिल रही,इस चुनौती से निपटने की क्या योजना है ?
कुमुद जोशी -हमे उनसे चुनौती नहीं है । जहां हम पहुंच रहे हैं,वहां कोई और नहीं पहुंच रहा है। खादी एक आंदोलन है। बीच में जो भी उतार-चढ़ाव आए हों पर इसके विकास के विकास के लिए नए प्रयास चल रहे हैं और समय के साथ खादी क्षेत्र भी बदल रहा है। हमने नए उत्पादों के लिए खादी इंडिया ब्रांड नाम शुरू किया गया है। युवाओं को आकर्षित करने के लिए विशेष योजनाएं चल रही है और फैशन को भी देखते हुए हम लोग डिजायनर खादी के उत्पाद तैयार क र रहे हैं। हमारी अपनी विशिष्टताएं हैं। खादी के अलावा बाजार में आपको कहीं भी शत प्रतिशत शुद्द पड़ा नहीं मिलेगा। काटन तो हमारा ही 100 फीसदी शुद्द है। ऐसे में हमारा खास ध्यान वैराइटी, डिजाइन और फैशन पर है। इसके लिए हम निफ्ट जैसी संस्थाओं की मदद भी हम ले रहे हैं। कम दाम पर हमारे उत्पाद बिना मिलावट के आम जनता के लिए उपलव्ध हैं। इसी नाते खादी में लोगों का विश्वास है। तभी रेलवे जैसी संस्थाएं हमसे बेड सीट, कम्बल और अन्य उत्पादों के साथ शुद्द सरसों का तेल भी खरीद रहे हैं। हाल में रेल मंत्री ने एक बैठक में मुझसे शुद्द सरसो के तेल की मांग की ,जिसे हम बड़ी मात्रा में आपूर्ति कर रहे हैं।
सवाल- पर खादी को लेकर युवाओं में खास जोश क्यों नहीं दिखता?
कुमुद जोशी -देखिये ,भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। इस पर हमारी निगाह है। हम युवाओं को अपने अभियान का हिस्सा बनाना चाहते हैं. स्कूलों में खादी के उपयोग को बढावा देने के लिए हमारे प्रयास चल रहे हैं। इसी के साथ हमारे पास जो 7050 आउटलेट हैं,उन सबको हम आधुनिक बना रहे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने राजधानी में चार और आउटलेट खोलने की बात कही है। हम चाहतें हैं नयी संस्थाएं भी इस काम में आगे आएं। हमारा सिर्फ इस बात पर जोर है िक केवल प्रमाणित खादी बिकनी चाहिए। हम इस में कोई समझौता नहीं क रेंगे। ई-चरखा को भी हम बढ़ावा दे रहे हैं। यह खुद बिजली पैदा करेगा। 2 बल्ब भी इससे जलते हैं और शाम को रसोई में उजाला रहने के साथ रेडियो सुना जा सकता है और मोबाइल भी चार्ज हो सकता है।
सवाल-कुमुद जी खादी के कारीगरों की हालत काफी खराब मानी जाती है,उसको सही करने की दिशा में भी ध्यान है क्या ?
कुमुद जोशी - सुदूर गांवो में बैठे लोग अगर प्रयास करें तो अच्छी खासी आय हासिल कर सकते हैं। राजस्थान एक मजदूर तेजाराम ने पांच माह में काटन खादी में 35,000 रू. हासिल किए और पुरस्कार पाया । इसी तरह वली मोहम्मद ने 16230 रू. हासिल किए । अगर किसी को घर बैठे पार्ट टाइम काम से इतना पैसा मिल जाये तो उनकी दशा में सुधार होगा ही. जब मैने प्रभार लिया तो इस बात पर खास तौर पर ध्यान दिया की कई मंत्रालयों में एक तरह की योजनाएं चल रही हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय भी चरखा, शोरूम तथा करघों के काम में मदद करता है, तो कपड़ा मंत्रालय के पास भी कई योजनाएं हैं। इसी तरह महिला और बाल विकास मंत्रालय, सामा· अधिकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, सिडबी ,विश्व बैंक की अपनी कई योजनाएं हैं। हमने इन के साथ तालमेल का प्रयास किया । हमारा प्रयास था,अगर ग्रामीण विकास लक्ष्य है तो फिर पैसा भी चैनलाइज होना चाहिए। कन्वर्जन का नया मंत्र अब कम कर रहा है। केन्द्र , राज्य तथा जिला तंत्र की मदद से खादी संस्थाएं तथा अच्छा काम करनेवाले एनजीओ को हम आगे ला रहे हैं। पहले लोगों को लगता था,यह संभव नही है ? पर कुछ प्रयोगों की सफलता से लगने लगा है , नए रोजगार के काफी मौके पैदा हो सकते हैं। झालावाड़ा विनोवा समिति के प्रयास से हमने रिकार्ड समय में दो बेहद दुर्गम गांवो में केवल दो महीने में बिजली ,पानी, पक्की रोड , सफाई सुविधा सब पहुंचा दी। म.प्र· की सीमा से लगे राजस्थान के इन गावों में कम के लिए उस राज्य से भी मजदूर पहुंच रहे हैं। अगर सभी कार्यक्रमों को गमभीरता से लिया जाये तो समाज के आखिरी व्यक्ति को लाभ कैसे नहीं मिलेगा ।
सवाल-खादी -ग्राम उद्योग का आगे किस पर खास जोर रहेगा?
कुमुद जोशी परंपरागत की जगह नया करने का प्रयास हो रहा है। कई क्षेत्र में नए कम हो रहे हैं। अगर अच्छा उत्पाद होगा तो उसकी अच्छी कीमत मिलेगी। हम आधुनिक चरखों के साथ लूम में भी बदलाव ला रहे हैं। इन प्रयासों से खादी क्षेत्र का आत््मविश्वास बढ़ा है। बीच में खादी क्षेत्र की हालत खराब होने लगी थी यह बात सबको पता है। राज्य सरकारे खादी क्षेत्र को पर्याप्त सहयोग दे रही हैं। गांव या युवाओं को रोजगार मिले तो कौन सा दल इसका विरोध करेगा ?
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