अरविंद कुमार सिंह
खादी क्षेत्र को भूमंडलीकरण या मुक्त अर्थव्यवस्था से घबराने या चिंतित होने की जरूरत नहीं है। खादी आजादी के आंदोलन के साथ पनपी है और इसे जनता ने खुले दिल से गले लगाया है। खादी को आजादी का परिधान बनने का मौका भी मिला। इसी नाते हमारे पास एक गौरवशाली परंपरा है। खादी क्षेत्र तीन 3 लाख से ज्यादा गांवो में 70 लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार के मौके उपलव्ध करा रहा है और समय के साथ बदलते हुए नयी भूमिका में खड़ा है। यह कहना है खादी ग्रामोद्योग आयोग की मुखिया सुश्री कुमुद जोशी ने कई सवालों पर अपनी बेबाक राय रखी और कहा िक इस क्षेत्र में विकास की विराट संभावनाएं हैं। पेश है उनके इंटरव्यू का खास अंश -
सवाल -खादी के समक्ष मंडरा रहे खतरों के प्रति आयोग कहाँ तक सचेत है ?
कुमुद जोशी -खादी और गांधीजो ·ो अलग नहीं किया जा सकता है। वास्तवि·ता तो यह है fक गांधी जी हमारे ब्रांड अंबेस्डर हैं। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने गांधी जी को विश्व स्तर पर मान्यता देते हुए विश्व अहिंसा दिवस की शुरूआत की । पुरी दुनिया ने आज गांधीजी को स्वीकार क र लिया है। इस नाते हमारे लिए दुनिया के बाजार में अपनी मजबूत पहचान बनाने में कोई दिक्कत नहीं आनेवाली है। पर हमारा खास ध्यान गांव-देहात पर ही है, जहां आज भी देश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी रह रही है। 1933 में ही गांधीजी ने कहा था िक सबको शहरों में ले जाना संभव नहीं है। ऐसे में गांवो में बेहतर जिंदगी देने के लिए गतिविधियों का विस्तार होना चाहिए। हमारा प्रयास इन गांवो को बेहतर बनाने की दिशा में सबसे ज्यादा है। इसमें सामाजिक और आर्थिक दोनो उद्देश्य निहित हैं।
सवाल-लेकिन देहाती उद्योगों पर भी नयी अर्थनीति व भूमंडलीकरण की मार साफ़ देखने को मिल रही,इस चुनौती से निपटने की क्या योजना है ?
कुमुद जोशी -हमे उनसे चुनौती नहीं है । जहां हम पहुंच रहे हैं,वहां कोई और नहीं पहुंच रहा है। खादी एक आंदोलन है। बीच में जो भी उतार-चढ़ाव आए हों पर इसके विकास के विकास के लिए नए प्रयास चल रहे हैं और समय के साथ खादी क्षेत्र भी बदल रहा है। हमने नए उत्पादों के लिए खादी इंडिया ब्रांड नाम शुरू किया गया है। युवाओं को आकर्षित करने के लिए विशेष योजनाएं चल रही है और फैशन को भी देखते हुए हम लोग डिजायनर खादी के उत्पाद तैयार क र रहे हैं। हमारी अपनी विशिष्टताएं हैं। खादी के अलावा बाजार में आपको कहीं भी शत प्रतिशत शुद्द पड़ा नहीं मिलेगा। काटन तो हमारा ही 100 फीसदी शुद्द है। ऐसे में हमारा खास ध्यान वैराइटी, डिजाइन और फैशन पर है। इसके लिए हम निफ्ट जैसी संस्थाओं की मदद भी हम ले रहे हैं। कम दाम पर हमारे उत्पाद बिना मिलावट के आम जनता के लिए उपलव्ध हैं। इसी नाते खादी में लोगों का विश्वास है। तभी रेलवे जैसी संस्थाएं हमसे बेड सीट, कम्बल और अन्य उत्पादों के साथ शुद्द सरसों का तेल भी खरीद रहे हैं। हाल में रेल मंत्री ने एक बैठक में मुझसे शुद्द सरसो के तेल की मांग की ,जिसे हम बड़ी मात्रा में आपूर्ति कर रहे हैं।
सवाल- पर खादी को लेकर युवाओं में खास जोश क्यों नहीं दिखता?
कुमुद जोशी -देखिये ,भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। इस पर हमारी निगाह है। हम युवाओं को अपने अभियान का हिस्सा बनाना चाहते हैं. स्कूलों में खादी के उपयोग को बढावा देने के लिए हमारे प्रयास चल रहे हैं। इसी के साथ हमारे पास जो 7050 आउटलेट हैं,उन सबको हम आधुनिक बना रहे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने राजधानी में चार और आउटलेट खोलने की बात कही है। हम चाहतें हैं नयी संस्थाएं भी इस काम में आगे आएं। हमारा सिर्फ इस बात पर जोर है िक केवल प्रमाणित खादी बिकनी चाहिए। हम इस में कोई समझौता नहीं क रेंगे। ई-चरखा को भी हम बढ़ावा दे रहे हैं। यह खुद बिजली पैदा करेगा। 2 बल्ब भी इससे जलते हैं और शाम को रसोई में उजाला रहने के साथ रेडियो सुना जा सकता है और मोबाइल भी चार्ज हो सकता है।
सवाल-कुमुद जी खादी के कारीगरों की हालत काफी खराब मानी जाती है,उसको सही करने की दिशा में भी ध्यान है क्या ?
कुमुद जोशी - सुदूर गांवो में बैठे लोग अगर प्रयास करें तो अच्छी खासी आय हासिल कर सकते हैं। राजस्थान एक मजदूर तेजाराम ने पांच माह में काटन खादी में 35,000 रू. हासिल किए और पुरस्कार पाया । इसी तरह वली मोहम्मद ने 16230 रू. हासिल किए । अगर किसी को घर बैठे पार्ट टाइम काम से इतना पैसा मिल जाये तो उनकी दशा में सुधार होगा ही. जब मैने प्रभार लिया तो इस बात पर खास तौर पर ध्यान दिया की कई मंत्रालयों में एक तरह की योजनाएं चल रही हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय भी चरखा, शोरूम तथा करघों के काम में मदद करता है, तो कपड़ा मंत्रालय के पास भी कई योजनाएं हैं। इसी तरह महिला और बाल विकास मंत्रालय, सामा· अधिकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, सिडबी ,विश्व बैंक की अपनी कई योजनाएं हैं। हमने इन के साथ तालमेल का प्रयास किया । हमारा प्रयास था,अगर ग्रामीण विकास लक्ष्य है तो फिर पैसा भी चैनलाइज होना चाहिए। कन्वर्जन का नया मंत्र अब कम कर रहा है। केन्द्र , राज्य तथा जिला तंत्र की मदद से खादी संस्थाएं तथा अच्छा काम करनेवाले एनजीओ को हम आगे ला रहे हैं। पहले लोगों को लगता था,यह संभव नही है ? पर कुछ प्रयोगों की सफलता से लगने लगा है , नए रोजगार के काफी मौके पैदा हो सकते हैं। झालावाड़ा विनोवा समिति के प्रयास से हमने रिकार्ड समय में दो बेहद दुर्गम गांवो में केवल दो महीने में बिजली ,पानी, पक्की रोड , सफाई सुविधा सब पहुंचा दी। म.प्र· की सीमा से लगे राजस्थान के इन गावों में कम के लिए उस राज्य से भी मजदूर पहुंच रहे हैं। अगर सभी कार्यक्रमों को गमभीरता से लिया जाये तो समाज के आखिरी व्यक्ति को लाभ कैसे नहीं मिलेगा ।
सवाल-खादी -ग्राम उद्योग का आगे किस पर खास जोर रहेगा?
कुमुद जोशी परंपरागत की जगह नया करने का प्रयास हो रहा है। कई क्षेत्र में नए कम हो रहे हैं। अगर अच्छा उत्पाद होगा तो उसकी अच्छी कीमत मिलेगी। हम आधुनिक चरखों के साथ लूम में भी बदलाव ला रहे हैं। इन प्रयासों से खादी क्षेत्र का आत््मविश्वास बढ़ा है। बीच में खादी क्षेत्र की हालत खराब होने लगी थी यह बात सबको पता है। राज्य सरकारे खादी क्षेत्र को पर्याप्त सहयोग दे रही हैं। गांव या युवाओं को रोजगार मिले तो कौन सा दल इसका विरोध करेगा ?
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