स्वायत्ता के माहौल से सहकारिता आंदोलन को नयी दिशा,हौंसला और ऊर्जा मिली है
अरविंद कुमार सिंह
नयी दिल्ली । उर्वरक उद्योग की अंतर्राष्ट्रीय हस्ती और सहकारिता क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादन संस्था इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी का मानना है कि स्वायत्ता के नए माहौल से देश में सहकारिता क्षेत्र में एक नया उल्लास आया है और उसे ऊर्जा मिली हैं। उनका मानना है कि सरकारों को चाहिए कि वे सहकारिता को मुक्त करके राष्ट्रीय विकास में एक नया माहौल बनाऐं। श्री अवस्थी यह भी मानते हैं कि सब्सिडी को खैरात मानने का सरकारी नजरिया बदलना चाहिए। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के निवासी डॉ .अवस्थी देश की जानी मानी उर्वरक कम्पनियो के मुखिया तो रहे ही हैं,अतंर्राष्ट्रीय उर्वरक उद्योग संघ के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र में इस क्षेत्र से भारत के प्रतिनिधि के रूप में उन्होने बहुत मजबूत छाप छोड़ी। बेहद काबिल केमिकल इंजीनियर और प्रशासक तो वह हैं ही,कला और साहित्य के काफी पारखी भी हैं। उनको देश के सबसे बेहतरीन मुख्य कार्यकारी के रूप में सम्मानित किया जा चुका है । उत्तर प्रदेश गौरव समेत दर्जनों सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सदस्यता से नवाजे गए डॉ अवस्थी सहकारी क्षेत्र की स्वायत्ता के भी मुखर पैरोकार रहे हैं। १९९३ में इफको के प्रबंध निदेशक बने डॉ अवस्थी ने इस संस्था को दुनिया कि नामी - गिरामी और आदर्श संस्था बना दिया है इस संस्था के ५ विशाल कारखानों, एक किसान सेज से लेकर कई इतिहास बन रहे हैं । हाल के सालो में बीमा से लेकर संचार समेत कई क्षेत्रों में भी इफको ने सफलता से कदम रखा है। अगर आप डॉ अवस्थी से उनके दफ्तर में मिले तो यह देख कर जरूर हैरान होंगे कि उनकी मेज पर कोई फाइल नही है । यहां प्रस्तुत है ,बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ अवस्थी से बातचीत के मुख्य अंश-
सवाल -पिछले डेढ़-दो दशक में उर्वरक क्षेत्र में कई नीतिगत परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों को आप किस रूप में लेते हैं। इसका क्या नफा- नुकसान रहा ?
जवाब-नीतिगत फेरबदल कैसे भी हों हमने उनका लगातार स्वागत किया है। उर्वरक उद्योग से हम ४० सालों से जुड़े हैं और मानते हैं कि नीतियों का समय- समय पर फेरबदल देश और समाज के हित में बहुत जरूरी है। मगर मैं इस बात को बहुत बारीकी से देख रहा हूं कि नीतियों का जैसा क्रियान्वयन हो रहा है,उसमें स्पष्टता और स्थिरता का अभाव है और इसके साथ ही उसमें दूरदर्शिता बिल्कुल नहीं दिखायी पड़ती है। यही कारण है कि इन नीतियों के प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं और स्वाभाविक तौर पर इफको और बाकी उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहता है।
दूसरी बात सब्सिडी से जुड़ी है। यह समझने की बात है कि सब्सिडी किसको दी जा रही है। कच्चे माल का दाम भारत सरकार तय करती है,खाद का दाम भी इसी तरह तय होता है। बीच के अंतर को सब्सिडी के रूप में देने को इस नजरिए से देखना बंद करना होगा कि हम कोई चैरिटी या खैरात दे रहे हैं। मगर मनोदशा ऐसी बन गयी है गोया खैरात दी जा रही है। ऐसी बातों से उर्वरक उद्योग की साख प्रभावित हो रही है। इस दृष्टिकोण को हमें बदलना होगा।
सवाल-आखिर लंबे समय से जो नजरिया बना है,वह बदल कैसे सकता है?
जवाब-देखिए,कारपोरेट गवर्नेंस में एक प्राइड होता है। वे लागत कम करने के लिए अपने तंत्र को और मजबूत बना रहे हैं और नयी कोशिशें कर रहे हैं। पर सरकार जब एक मापक तय कर लेती है तो उससे सोचने और काम की क्षमता का अभाव होने लगता है। यह मूलमंत्र हो गया है कि हमको इफीसिएंसी का मापक करना है। वहीं दूसरी और अक्षम उद्योग को जीवित रखने की कोशिश भी की जा रही है,इन सबके बीच स्वाभाविक रूप से जो विरोधाभास दिखता है,उससे उबरने की जरूरत है। भारतीय उर्वरक उद्योग दुनिया में अपनी सक्षमता के लिए जाना जाता है और हमारी ओर से लगातार इसे बुलंदी पर ले जाने की कोशिश की जा रही है।
सवाल-मगर दुनिया भर में सब्सिडी घटाने की बात हो रही है। हम पर भी दबाव हैं,ऐसे में सब्सिडी तो लगातार घटनी ही है ?
जवाब-सब्सिडी बेशक घटाया जाये पर ऐसा नहीं होना चाहिए कि मुर्गी ही हलाल हो जाए-हमारा उद्योग ही बंद हो जाये। इस समय यही हालत दिख रही है। जिसके कारण विदेशो में भी दाम बढ़ गए है। अब सवाल यह उठता है कि विदेश में उर्वरक सस्ते हैं। सच्चाई तो यह है कि हम जो कच्चा माल ले रहे हैं,वह विदेशों की तुलना मे छह फीसदी ज्यादा है। अगर हमको विदेशी दाम में ही कच्चा माल मिल जाये तो दुनिया में हम सबसे सस्ता उर्वरक मुहैया करा सकते हैं। मैं सारे तथ्यों को देख कर इस मत का हूं कि अगर एक व्यवस्थित तंत्र बनाना है तो ३ डालर प्रति ब्रिटिश थर्मल यूनिट हरेक को बिजली देने की व्यवस्था कर दी जाये। इससे देश का नक्शा ही बदल जाएगा। परिवहन,उद्योग,रेल और सभी क्षेत्रों का इससे कायाकल्प होगा,ये वायवल हो जाऐंगे। सारे देश में इसी एक समान मूल्य यानि दो सवा दो रूपए यूनिट पर बिजली मिले तो हम लोग भी यूरिया को ६५०० रूपए प्रति टन यानि ६ रूपए प्रति किलोग्राम दे सकते हैं। बाकी सारी सब्सिडी आप बंद कर दें और केवल यही कर दें तो देखिए देश कहां से कहां जाता है। इसके बाद आप चाहें तो मार्केट फोर्स को ओपेन कर दें,आयात और निर्यात जैसा चाहें,होने दें तो रोजगार के भी असीमित मौके बढ़ेंगे।
सवाल-सहकारी क्षेत्र में स्वायत्ता की आप लगातार पैरोकारी करते रहे थे। नए सहकारिता अधिनियम के बाद आपको माहौल में कुछ बदलाव दिख रहा है क्या?
जवाब-सहकारी क्षेत्र का जहां तक सवाल है,बहुराज्य सहकारी अधिनियम ने हमें स्वायत्ता दी है। हम लोग प्रधानमंत्री,कृषि मंत्री के विशेष आभारी हैं जिसके नाते आज पूरी दुनिया हमारे सामने खुल गयी है। एक नया जोश इसने भर दिया है और हमें नयी ऊर्जा मिल रही है। इसका सकारात्मक असर भी दुनिया देख रही है। दुनिया भर के देश भारत को हैपनिंग प्लेस के रूप में निरूपित कर रहे हैं। हमें खुशी है कि सरकार सुधार की ओर जा रही है,इसमें और जोर से जुटा जाये और सरकारी तंत्र का भी सुधार हो तो बहुत सकारात्मक माहौल बनेगा और देश की बहुत तेजी से उन्नति होगी। उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में भी ध्यान देगी।
सवाल-मगर यूपी बिहार में तो सहकारिता की दशा बहुत खराब है,यह कैसे सुधरेगी?
जबाव-आप गलत सोच रहे हैं। बिहार में सहकारिता की हालत सुधर रही है। बिहार सरकार ने स्वावलंबी सहकारी समिति अधिनियम बना जो कदम उठाया है उससे एक नया माहौल बन रहा है। आंध्रप्रदेश में भी कानून बन गया है मैं समझता हूं कि सहकारिता के क्षेत्र को सरकारें मुक्त कर दें तो इस आंदोलन और जनता का बड़ा भला होगा।
सवाल-इफको लगातार मुनाफा कमा रहा है,विस्तार हो रहा है,जबकि इस उद्योग की दिशा तमाम जगह ठीक नहीं है। इतना बेहतर प्रबंधन और गुडविल बना पाना आखिर कैसे संभव हुआ है?
जवाब-इफको एक अच्छे इरादे से शुरू किया गया था। जिस चीज की शुरूआत भी अच्छे इरादे से होती है,सदभावना के साथ होती है,वहां चीजें ठीक ही रहती हैं। इफको में सरकार और सहकारिता क्षेत्र का पैसा लगा पर उसके प्रबंधन के लिए बेहद कर्मठ कारपोरेट और मैनेजर लिए गए। कारण यह था कि यह हाईटेक का क्षेत्र था। संयत्र प्रबंधन के लिए तो आपको बेहतर टेक्नोक्रेट ही चाहिए। यह काम हमने किया । दूसरा काम यह हुआ कि मालिको (शेयरहोल्डर्स) ने मार्केटिंग के द्वारा एक अच्छा तंत्र बनाया और उनको फायदा हुआ। तो शुरू से ही इफको नें अच्छे कामों की परंपरा बनी रही है। हमारी भावना काम करने की है और अपनी क्षमताओं के मुताबिक यथासंभव काम में लगे हैं। इंडियन फार्म फारेस्ट्री के मार्फत सामाजिकी वानिकी की दिशा में काम हों या फिर गांवों को गोद में लेकर उनका समग्र विकास तथा किसानो की दशा सुधारने की कोशिश,अस्पताल,स्कूल ,गरीब किसानो की मदद के लिए किसान सेवा फंड,संयंत्रों के क्षेत्र में स्थानीय विकास के प्रयास हमारी ओर से लगातार चल रहे हैं। हमारा काम भी एकदम पारदर्शी है। फेवर एकदम नहीं है,यह तो मैं नहीं कहता पर नाममात्र का ही होगा। कोई भेदभाव नहीं है। हमें अपने कामकाज पर संतोष भी है। काम विकेन्द्रित है,किसी को सीधे ऊपर जाने की जरूरत नहीं। हमारे सहयोगी भी समर्पण से काम करते हैं। सकारात्मक कामो की हम सराहना करते हैं और नकारात्मक कामों को हतोत्साहित करते हैं। ऐसे मे बेहतर माहौल और कार्यसंस्कृति तो बननी ही है।
सवाल-उर्वरक उद्योग का भविष्य आपको कैसा लगता है ?
जवाब- किसान का भविष्य,उर्वरक उद्योग का भविष्य और देश का भविष्य एक दूसरे पर निर्भर है। किसी एक के भविष्य के साथ कोई प्रभाव पड़ेगा तो समानांतर रूप से दूसरा प्रभावित होगा ही। हम चाहते है कि उर्वरक क्षेत्र को एक सकारात्मक नजरिए से देखा जाये। सरकार ,उर्वरक क्षेत्र और किसान भागीदार हैं और उनको भागीदार की भूमिका निभानी चाहिए। उर्वरक मंत्री, एसोसिएशन और विभाग के के बीच एक सकारात्मक संवाद का माहौल बना है। कभी-कभी अवरोध आते हैं,पर बेहतर भावना से हम काम करते रहे तो अवरोधको के हटने में भी समय नहीं लगेगा। मैं देश के उज्जवल भविष्य के प्रति बहुत आशान्वित हूं।
सवाल-यह समस्या साफ दिख रही है कि हरित क्रांति के इलाको में काफी असंतुलित उर्वरक उपयोग हो रहा है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है। इसे कैसे रोका जा सकता है?
जवाब-मूल्य नीति संतुलित न होने के नाते उर्वरको का असंतुलित इस्तेमाल हो रहा है। इस दिशा मे सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। जहां तक जैव उर्वरको का सवाल है,उस दिशा में भी हम लोग काफी प्रयास कर रहे हैं। हमारा मत हैं कि बायोकेमिकल आर्गेनिक और ग्रीन मैन्युर का संतुलित उपयोग होना चाहिए। हम इस बात पर हर स्तर पर बल दे रहे हैं। हम यह भी मानते है कि देश का किसान बहुत बुद्धिमान है और कई जगह संतुलित उपयोग हो भी रहा है,पर जहां तक जैव उर्वरको का सवाल है,दिककत यह है कि गोबर का ज्यादातर उपयोग उपले बनाने में हो रहा है। अगर बिजली यानि ऊर्जा देश भर में एक दाम पर सर्वसुलभ हो जाये तो यह समस्या नियंत्रित हो सकती है।
सवाल-इफ्को की भावी योजनाऐं क्या हैं और उनका चरणबद्ध रूप से कैसे क्रियान्वयन हो रहा है ?
जवाब-कई परियोजनाओं पर हमारा काम चल रहा है। हम एक वाणिज्यक बैंक स्थापित करने जा रहे हैं जिसका सारा जोर देहात पर होगा। इस बैंक के लिए रिजर्व बैंक की अनुमति भी हमें मिल गयी है। विजन २०१० में हमारा कारोबार लक्ष्य १५ हजार करोड़ करना है। इसके अलावा हम किसानों के लिए बाजार खोलने जा रहे हैं,जो हर तहसील में खुलेगा और किसानो की जरूरत की सारी जीचें वहां मिलेंगी। इस बाजार मे पारदर्शिता के लिए सारी जीचें कंप्यूटर के माध्यम से बेची खरीदी जाऐंगी। इस बाजार में कि सान अपनी उपज भी उचित मूल्य पर बेच सकेगा। छत्तीसगढ़ में ५०० मेगावाट का हमारा पावर प्लांट भी लग रहा है। किसान सेज समेत कई दिशा में हमारा काम चल रहा है ।बीमा के क्षेत्र में हम प्रवेश कर लाभ कमा रहे हैं। हमारी ओमान परियोजना आकर ले चुकी है । बहुत सी चीजें हैं पर धीरे-धीरे व्यवस्थित तरीके से हम आगे बढऩा चाहते हैं।
——( जनसत्ता एक्सप्रेस और इंडियन एक्सप्रेस के लिए २००५ में लिए गए साक्षात्कार का मुख्य अंश) ——----
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें