मंगलवार, 26 अगस्त 2008

लालू यादव -विश्वस्तरीय रेल बनाने का इरादा

महंगाई के मुहं पर तमाचा है मेरा रेल बजट
अरविंद कुमार सिंह
नई दिल्ली .मेरा रेल बजट मंहगाई के मुंह पर तमाचा है। आम आदमी को ध्यान में रखकर हमने किराया भाड़ा बढ़ाना तो दूर उलटे इसे घटा दिया है। अगर रेलवे ने माल और यात्री भाड़ा बढ़ा दिया होता तो कल्पना क रिए मंहगाई का क्या हाल होता। मगर हम लोगों ने तमाम दबाव के बावजूद ऐसा नहीं किया है। एक इंटरव्यू में रेल मंत्री ने तमाम सवालों के जवाब खुलकर दिए। उन्होने कहा , रेल बजट सामाजिक न्याय को ध्यान में रख कर बना है और तमाम पिछड़े और गरीब इलाको के कायाक ल्प का तानाबाना इसमें बुना गया है। इन प्रयासों से भारतीय रेल को विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस बनाने में मदद मिलेगी तथा जो यात्री और माल हमसे दूर होते जा रहे थे वे वापस लौटेंगे। यहां प्रस्तुत है रेल मंत्री से बातचीत के प्रमुख अंश-
आपने इस रेल बजट में भी जो कुछ किया है,वह लोक लुभावना दिखता है। इस बजट के पीछे आपका कौन सा नजरिया या सोच दृष्टिगत होती है ?जवाब- अगर हम उद्योग धंधों या जनता की जेब से और पैसे किराये के रूप में ले लेते तो जरूरी नहीं था िक इससे ही रेलवे का कायाकल्प हो जाता। किराया बढ़ता तो आम आदमी पर ही और मार पड़ती। हम लोग जनता के ही नुमाइंदे हैं और चाहते हैं लोगों पर उतना ही भार लादा जाये जितना उनकी क्षमता हो। सामाजिक न्याय और गरीबो को लक्ष्य बना क र और इसी भाव को केद्रित कर मेरा रेल बजट बना है। हम किसी व्यक्ति या किसी इलाके से भेदभाव नहीं क रना चाहते हैं। हमें तो विरासत में रेलवे खस्ता हाल में मिली थी । उसको ठीक करने और बेहतर शक्ल बनाने की कोशिश कर रहा हूं। जो कुछ किया जा रहा है वह लोगों के सामने है। हमारा रेल बजट मंहगाई के मुंह पर तमाचा है। बिना किराया भाड़ा बढ़ाए अगर हमारा सरप्लस 20,000 करोड़ रू.से ज्यादा हो गया ,तो यह किसी जादू की छड़ी से नहीं काम करने से हुआ है। हमने सभी वर्गो के हित को ध्यान में रखा है गरीब, किसान ,विक लांग, बेरोजगार युवा, महिलाएं,सीनियर सिटिजन और हर नागरिक हमारे एजेंड़े में बजट तैयार करते समय रहा है। मैं एक आम आदमी और किसान मजदूर का बेटा हूं। स्वाभाविक तौर पर इनके बारे में सोचूंगा।
सवाल- तमाम आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं िक लाभ हानि के गणित को विचारे बिना जितनी भारी राशि रेलवे तमाम परियोजनाओं पर लगा रही है,उससे रेलवे की दीर्घकालिक सेहत पर बुरा असर तो नहीं पड़ेगा?जवाब-देखिए राष्ट्रपतिजी ने भी रेल मंत्रालय के कार्यकरण की तारीफ की है। इससे बड़ा और क्या सर्र्टिफिकेट हो सक ता है। रही बात अर्थशास्त्रियों की तो इसमें मुझे समझदारी नहीं दिखती िक आप भाड़ा बढ़ा दें और आपके हिस्से में माल ही न आए। सभी जानते हैं,रेलवे ट्रकों से सस्ता है। हमने थोड़ा अक ल लगा कर जो उपाय क र दिए है, ,उसका असर साफ दिख रहा है और माल यातायात में कितनी ज्यादा बढोत्तरी हो रही है। हमारा लागत खर्च (आपरेटिंग रेसियो) दुनिया में सबसे बेहतरीन स्तर पर आ गया है। हमने रिकार्ड लदान की ,रिकार्ड सवारियां रेल के पास आ रही हैं।
सवाल-आपने 11वीं योजना के दौरान भारी भरकम निवेश का जो तानाबाना बुना है उसे साकार करने के लिए संसाधनों की उपलब्धता भी एक अहम पक्ष है। दुर्गम इलाको में निजी क्षेत्र क्या दिलचस्पी लेगा?जवाब-पब्लिक प्राइवेट पार्र्टनरशिप निश्चय ही रंग लाएगी। मैं अकेले डिडिकेटेड फ्रेट कारिडोर की बात अगर क रूं तो इसी क्षेत्र में हमें काफी उम्मीद है। पूर्वी और पश्चिमी कारिडोर बनाने में 25,000 करोड़ रू. खर्च होंगे। हम चाहते हैं ,इस पर काम युद्दस्तर पर हो। हमारे आंतरिक साधन है,लोन है और मदद के लिए हम प्रधानमंत्री से वार्ता करेगे। दुनिया में लोन लेकर ज्यादा से ज्यादा काम हो रहे हैं,पर हम अपना भी काफी पैसा लगाएंगे। यह कारिडोर बना तो बाकी लाइनों पर जो भारी दबाव है वह कम होगा। कारिडोर बनने के बाद लोग लंबी दूरी में माल ट्रको से क्यों भेजेंगे,हमारा भाड़ा तो ट्रको से भी क म है। सड़को पर भीड़ भी क म होगी और हमारी रेल लाइनो पर भी आज जैसा भारी दबाव नहीं होगा। वह पूरी तरह विद्युतीकृत लाइन होगी और हरियाणा पंजाब से लेक र कई राज्यों यह परियोजना बहुत भला करेगी । लुधियाना,मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और क ई बंदरगाहों आदि पर इस परियोजना से कायाकल्प हो जाएगा। इन बातों को ही ध्यान में रख क र हमने 11 वीं योजना के अंत तक माल लदान 1100 मिलियन टन तथा यात्रियों को संख्या बढ़ा कर 840 करोड़ करने करने का लक्ष्य रखा है। ये लक्ष्य पूरे होंगे।
सवाल-यह कायाकल्प तो अपनी जगह है,देश की मुख्यधारा से क टे इलाको को रेल लाइन से जोडऩे , लंबित परियोजनाओं को साकार करने तथा क्षेत्रीय असंतुलन मिटाने की दिशा में क्या हो रहा है?
जवाब-गरीब पिछड़े और उपेक्षित इलाके हमारे एजेंडे का हिस्सा है। हर राज्य हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इन इलाको में आधारभूत ढांचे का विकास हमारी प्राथमिकता है। हम लोग योजनाबद्द तरीके से इस पर काम कर रहे हैं। नयी लाइन,आमान परिवर्तन, विद्युतीकरण से लेकर यात्री सुविधाओं सबमें पिछड़े इलाको पर हमारा ध्यान है। हमारी सोच में अगर गरीब और दलित पिछड़े लोग और इलाके न होते तो काठ की पटरी पर दशको से यात्रा क र रहे लोगों की सुविधा के लिए हम कु शन की गद्दी की बात न सोचते। औरतों को लोअर सीट , विक लांगो और बूढ़े लोगों के लिए विशेष सुविधा की बात हम क्यों क रते। सब्जीवाले या दूध विकरेताओं के लिए अलग से कोच की बात भी हमारी इसी परिकल्पना का हिस्सा हैं। इससे मुसाफिरों को काफी राहत मिलेगी। उपनगरीय यात्रियों की सुविधा भी हम बढ़ा रहे हैं। हम सभी वर्ग और हर नागरिक के कल्याण की बात सोचते हैं। मैं मानता हूं ,आधारभूत ढांचे के विकास की उपेक्षा लंबे समय तक हुई। रेलवे भी इससे अछूता नहीं रहा। पर लाभ के साथ सामाजिक दायित्व भी है। हम कोई भेदभाव नहीं करने देंगे। हम भारतीय रेल को विश्व स्तरीय बनाना चाहते हैं। इसी को ध्यान में रख कर मधेपुरा,डालमियानगर से लेकर रायबरेली जैसे पिछड़े इलाके में हम रेलवे कोच,वैगन, पहिया तथा धुरा जैसे कारखाने लगाने जा रहे हैं। गरीब रथ और तमाम रेलगाडियां गरीब और पिछड़े इलाको में हम चलाने जा रहे हैं। इन सबसे भारतीय रेल की कायापलट होगी।
सवाल-इस कायापलट का श्रेय आप किसको देते हैं?
जवाब-मैं श्रेय की राजनीति में नहीं पड़ता। हमारे 16 लाख रेल क र्मचारी ही हमारी बुनियाद है। अच्छा काम हो रहा है तो मैं इसका श्रेय भी मैं रेल कर्मचारी भाइयों को ही देता हूं। उनके कल्याण की दिशा में भी हमने कई क दम उठाए हैं और जैसे जैसे काम आगे बढ़ेगा,वे भी आगे बढ़ेगे।
सवाल-हाल में कई हादशों में यह साफ हुआ fक रेलवे आतंक वादियों के निशाने पर है। ऐसे में यात्रियों की विशेष सुरक्षा की दिशा में क्या क दम उठाने जा रहे हैं?
जवाब-इस दिशा में हम सजग हैं । तमाम नए सुरक्षा उपाय हो रहे है। आरपीएफ में 8000 रिक्त पदों को भरने,उनको साजो सामान से लैस करने, क्लोज सर्किट टीवी समेत सारे उपाय हो रहे हैं। डाग स्क्वायट बढाए जा रहे हैं,जबकि संवेदनशील मंडलों में विस्फोटको को खोजनेवाली मशीनें,मेटल डिटेक्टर और वीडियो कैमरे लग रहे हैं। यात्रियों की जानमाल की हिफाजत में हम अपने स्तर से कोई कोई कमी नहीं आने देगें। रेल संरक्षा की दिशा में भी तेजी से काम चल रहा है इसी नाते यातायात में भारी बढ़ोत्तरी होने के बावजूद रेल दुर्घटनाओं में बहुत कमी आयी है। रेल संरक्षा निधि के अधीन हो रहे सारे कार्य मार्च 2008 तक लक्ष्य बना कर पूरे कर लिए जाएंगे।
सवाल-अनुसंधान विकास तथा गति के मामले में बाकी रेलों की तुलना में भारतीय रेल अभी पीछे हैं। उच्च गति की दिशा में क्या नए कदम उठने जा रहे हैं?
जवाब-समय जैसे जैसे बदलता है,चेहरे भी बदलते हैं। हमारा प्रयास है िक 2-3 घंटे में चुनिदां खंडों पर ऐसी तेज रफ्तार गाडिय़ां चलें जो मुसाफिरों को महज दो तीन घंटे में गंतव्य तक पहुंचा दें। हमारे चुंनिंदा स्टेशन विश्व श्रेणी के बनें। ऐसे 600 स्टेशन हम हाथ में ले रहे हैं। भविष्य का खाका सबकी मदद से हम खींच रहे हैं। भारतीय रेल की एक मजबूत विश्वस्तरीय छवि बन रही है।

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